प्राचीन महल का वैभव
खंडहर में बदल गया है
कभी तन के खड़ा था
हिमालय सा
आज रेत के पर्वत सा
बिखर गया है
उसकी इस दशा पर
सभी तो मौन हैं
कुछ हमदर्दी दिखाएँ
साथ में दो आसूं बहायें
ऐसा इस अपनो की दुनिया में
बताओ तो भला कौन है
मैं हमदर्दी हो सकता हूँ
थोड़ा साथ दे सकता हूँ
पर आंसू बहाने को मुझसे मत कहना
मेरे आंसूं सुख चुकें हैं
कुछ जमा है फिक्स डेपोसित में
ताकि अपनी ही मौत पर फूल न चढ़ा सकूं
बाज़ार से खरीदकर
तो अपने आंसू तो बहा सकूँ
हाँ, मेरा स्नेह नही हुआ समाप्त
तुम ले लो इसको
क्यूँ की चौराहे की हवा
अब सहन नही होती
मेरी लौ होती है विचलित
होती है कम्पित
मेरा स्नेह अभी नही हुआ समाप्त
तुम ले लो इसको
तुमको करना है प्रकाशित
अतीत के वैभव को
मेरा क्या!
मैं तो टोटके का दीपक हूँ
मेरा बुझ जाना ही अच्छा!
लो! मैं बुझता हूँ।
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