Friday, October 16, 2009

दो कवितायें

दीप हूँ पर ज्योत मेरी बुझ् चुकी है

स्नेह भरा है बात लेकिन जल चुकी है

ले सको तो स्नेह ले लो बात मत रखना ह्रदय पर

रत भर जलता रहा हूँ अब न जलना चाहता हूँ

दो

मैं तो रिता दीपक था

कोने कचरे में पड़ा हुआ

किस कोमल कर ने मुझे उठा कर स्नेह भरा

श्वेत धवल कोमल कपास से बट कर बाती

किसने सजाई मेरी छाती

और जगा दी ज्योत

मुझे अब जलना होगा

जब तक जीवन शेष

तिमिर से लड़ना होगा

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